Saturday, April 13, 2013

ख्वाब


ख्वाब देखता हूँ, हर रोज़
ऐसा मेरा मान्ना है
कुछ याद रह जाते हैं
और कुछ धुंधले से दीखते हैं
इनमे से कुछ मेरी उमीदो का प्रतिक है
और कुछ मेरी बेहाली का सबूत
खेर, क्या कर सकते हैं
यह हमारे काबू में थोड़ी हैं
और फिर अगर यह न होते तो
वास्तविकता बेकाबू हो जाती
इसीलिए शायद
ख्वाब देखता हूँ, हर रोज़
ऐसा मेरा मान्ना है
-अनिश 

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